Friday, January 14, 2011
कहां गया आधी रात का वादा ?
तिरेसठ या चौसठ वर्ष अनंत देश के जीवन में कुछ पलों की तरह होते हैं, परंतु अन्याय, अत्याचार, असमानता और असंतोष झेलने वाले असंख्य लोगों के लिए ये वर्ष सदियों की तरह कटे हैं। एक ही कालखंड ने एक ही देश के अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग प्रभाव छोड़ा है। 14 अगस्त 1947 की आधी रात को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संसद में जो भाषण दिया था, उसे साहित्य धरोहर की तरह माना गया है। 'जब दुनिया सो रही होगी, भारत जागेगा । स्वतंत्रता और जीवन की सुबह होगी। इतिहास में कभी-कभी ऐसा क्षण आता है, जब हम पुरातन से निकल कर नए युग में प्रवेश करते हैं...। सदियों से शोषित देश की आत्मा जागती है और इस अवसर पर हम शपथ लेते हैं जनता और मानवता की सेवा की।' भारत के गौरवशाली अतीत ती दुहाई देते हुए नेहरूजी ने देश के उज्ज्वल भविष्य की कामना की थी। नेहरू के आदर्श और आज के यथार्थ भारत में सदियों के फासले हैं। देश के भीतर अनेक देश बन गए हैं और उत्तर-पूर्व के प्रांतों में अतिवादी संगठन अपनी समानांतर सरकारें चला रहें हैं। कश्मीर में व्यवस्था पूरी तरह ठप्प हो गई है। जिस संसद में नेहरूजी ने वह भाषण दिया था, उस संसद में सवाल पूछने के पैसे मांगे जाते हैं। सांसदों को जिस भाव में पौष्टिक भोजन मिलता है, उस भाव में आवाम को कंकर-पत्थर भी नहीं मिल सकते। उस महान भाषण में नेहरूजी ने कहा था कि स्वतंत्रता और शक्ति के साथ उत्तरदायित्व आता है और इस संसद में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को उत्तरदायित्व को वहन करना है। स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हर चुना हुआ सांसद अपने दिल पर हाथ रखकर अपने आचरण की स्वयं परीक्षा करें। अगर वह ईमानदारी से आत्मावलोकन करता है तो संसद की कैंटीन में उपलब्ध सस्ता और पौष्टिक भोजन उसके गले से नहीं उतर सकता। आवाम की सुविधाएँ घटती और सांसदों के वेतन व सुविधाएं बढ़ती रहती हैं तथा महान संसद में एक स्वांग चलता रहता है। देश के सबसे बड़े जलसाघर में एक फार्स खेला जा रहा है और संसद में महान नेताओं की आदमकद तस्वीरों पर शर्म के भाव अनदेखे किए जा रहे हैं।
उस महान भाषण में नेहरूजी ने कहा था कि सभ्यता की सुबह से ही भारत अपनी अंतहीन तलाश में निकला और अपने चिन्ह छोड़ने वाली सदियां भारत के महान प्रयास और उसकी सफलताओं और विफलताओं से भरी पड़ी हैं। अच्छे-बुरे वक्त से गुजरते हुए भारत ने नैतिकता और आदर्श की तलाश जारी रखी और आज बुरा वक्त गुजर चुका है और भारत स्वयं को पुन: खोजेगा...नए शिखर हमारी राह देख रहे हैं।
आजाद भारत ने नैतिकता और आदर्श जीवन मूल्य खो दिए, जिसे बकौल नेहरू वह सदियों से तलाश रहा है था। हमारी सारी उपलब्धियों में चुटकी भर नैतिकता के अभाव के कारण वह आह्लाद नहीं है जो जीवन की सार्थकता देता है। कई बार लगता है कि महात्मा गांधी का प्रभाव कालखंड भारत का एक स्वन था, हमारी हकीकत तो हमारा भ्रष्ट आचरण ही है। इस घोर अनैतिकता को लिए हर भारतीय जवाबदार है। हमने गलत चुनाव किए हैं और केवल वे लोग ईमानदार बने रहें, जिन्हें बेईमानी के अवसर नहीं मिले। आदर्शविहीन सफलताएँ और अनैतिकता से प्राप्त उपलब्धियों का असमान वितरण ऐसे ही हुआ, जैसे अँधा बांटे रेवड़ी, चीन्ह चीन्ह के देय. नेहरुजी ने अपने भाषण में कहा था कि भारत पूर्व में उगा नया सितारा है जो एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया को राह दिखायेगा। उन्होंने आशा जताई थी कि आशा का तारा अवाम का विश्वास नहीं तोड़ेगा। आज एशिया के अनेक देशों से हमारे संबंध खराब हैं और जनता के साथ विश्वासघात हुआ है।
क्या महान संसद भवन में 14 अगस्त की आधी रात को नेहरू द्वारा दिए गए भाषण के शब्द आज भी गूंजते हैं? जब आम आदमी की आवाज ही घुट गई है, तब महान नेता की वाणी कैसे गूंजेगी ?
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