Tuesday, April 19, 2011

अब जब तुम अपने नहीं

आज भी तुम्हारी याद बहुत सताती है

कभी तुम्हारे खत पढ़कर
किताब में छिपा लिया करता था
अकेलेपन में उसका एक-एक शब्द
तुम्हारा चेहरा लिये आता
और घण्टों मुझसे बतियाता रहता था
अब जब तुम अपने नहीं तो
मानो वे शब्द ही खो गये
अब जब किताब खुलती है तो
कोरे कागज के ढेर ही हाथ लगते हैं
अब जब तुम अपने नहीं तो
मानो तुम्हारे सपने भी पराए लगते हैं!

2 comments: