आज भी तुम्हारी याद बहुत सताती है
कभी तुम्हारे खत पढ़कर
किताब में छिपा लिया करता था
अब जब तुम अपने नहीं तो
मानो तुम्हारे सपने भी पराए लगते हैं!
कभी तुम्हारे खत पढ़कर
किताब में छिपा लिया करता था
अकेलेपन में उसका एक-एक शब्द
तुम्हारा चेहरा लिये आता
और घण्टों मुझसे बतियाता रहता था
अब जब तुम अपने नहीं तो
मानो वे शब्द ही खो गये
अब जब किताब खुलती है तो
कोरे कागज के ढेर ही हाथ लगते हैंअब जब तुम अपने नहीं तो
मानो तुम्हारे सपने भी पराए लगते हैं!