Saturday, August 28, 2010

भूमंडलीकरण के दौर में मीडिया की भूमिका

             भूमंडलीकरण के जमाने में विज्ञान और बाज़ार  का अनोखा संगम हो रहा है, लेकिन क्या इसका फायदा सभी वर्गों को मिल पा रहा है ? बढ़ती सम्पन्नता और फैलते बाजार के साथ-साथ सामाजिक बहिष्कृत लोगों की संख्या भी बढ़ी है। यह वह वर्ग है जो मार्केट से अलग है, जो इंटरनेट से नहीं जुड़ा है, जो शेयर बाज़ार के उथल-पुथल से परे किसी तरह अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करने में व्यस्त रहता है। यह वह वर्ग है जिसके बच्चे टेलीविजन के रियेलिटी शो में भाग नहीं ले पाते। ऐसे में मीडिया की भूमिका क्या हो ? ऐसा माहौल बनाना, जिसमें इस बहिष्कृत वर्ग की समस्याओं पर नीतिगत चर्चा हो। क्या यह मीडिया की भूमिका नहीं ? क्या हमारा यह कर्त्तव्य नहीं कि हम इस वर्ग को विकास की सीढ़ी के पहले पायदान तक पहुंचने में मदद करें ?

                आशा और निराशा के बीच अहम मुद्दा यह पूर्वानुमान लगाना नहीं कि क्या होने वाला है वरन् भविष्य की रूपरेखा उभरने में सहयोग करना है। यह एक साहसिक कार्य है। अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत लाभ और बाज़ार से फायदा उठाने के सिद्धांत के बारे में ही बताया जाता है, लेकिन हमारी सुरक्षा और समृद्धि उन सामूहिक निर्णयों पर निर्भर करती है जो हमें बीमारियों से लड़ने, शिक्षा का प्रसार करने, इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने या गरीबों की मदद करने में सहायक होते हैं। यदि मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर (सड़कें, बिजली, पानी) और मानव संसाधन (स्वास्थ्य, शिक्षा) ठीक-ठाक है तो बाज़ार विकास का गतिमान इंजन बन सकता है। (इसके अभाव में बाजार बड़ी बेरहमी से लोगों को गरीबी के दलदल में ढ़केलते हुए आगे बढ़ जाता है। ) सामूहिक एक्शन के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि की व्यवस्था राज्य द्वारा होने पर आर्थिक विकास के मार्ग खुलते हैं।

2 comments:

  1. ददन भाई बहुत कम शब्दों में सलीक़े से बेहद गंभीर बात आपने कही है !
    बधाई और आभार!

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  2. dadaan bhai bohot gambhir baat ko uthaya jiski lgatar yeh samaj awhelna kr rha hai .. acha likha u hi likhte raho...

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